मिथ्या-दृष्टि
ओशो, एकदम कालातीत आणि सुसंगत विवेचन, समजून घ्या म्हणतो मी हे...
अंजन आहे सद्य परिस्थिती बाबत...
मिथ्या-दृष्टि का अर्थ होता है : जिसे उलटा देखने की आदत पड़ गयी है। उलटी खोपड़ी !
सीधी बात को भी जो उलटा करके। जो सीधा देख ही नहीं सकता।
जिसकी दृष्टि में बड़ी गहरी भ्रांति बैठ गयी है, ऐसे बहुत लोग हैं, जो किसी की भी प्रशंसा नहीं सुन सकते। जो केवल निंदा सुन सकते हैं। इसीलिए तो लोग ज्यादातर निंदा करते हैं। क्योंकि निंदा ही सुनने वाले लोग हैं।
जहां दो चार आदमी मिले कि निंदा शुरू हो जाती है !
मिथ्या-दृष्टि दूसरे की निंदा सुन सकता है। क्यों? क्योंकि दूसरे की निंदा से उसके अहंकार को भरण-पोषण मिलता है। तो वह कहता है अच्छा! तो यह भी चरित्रहीन है! इससे तो हम ही भुले हैं। ‘मिथ्या-दृष्टि किसी की प्रशंसा बर्दाश्त नहीं कर सकता, क्योंकि वह किसी की प्रशंसा को अपनी निंदा मानता है। दूसरा बड़ा है, तो मैं छोटा हो गया यह उसका तर्क है। दूसरा सुंदर है, तो मैं कुरूप हो गया यह उसका तर्क है। दूसरा चरित्रवान है तो फिर मेरा क्या!
तुम ध्यान रखना...
निंदा का एक मनोविज्ञान है। क्यों लोग निंदा पसंद करते हैं? तुम अगर किसी से कहो कि अ नाम का आदमी संत हो गया है, कोई मानेगा नहीं। पच्चीस दलीलें लोग लाएगे कि नहीं, संत नहीं है। सब धोखा-घडी है। सब पाखंड है। और तुम किसी के संबंध में कहो कि फला आदमी चोर हो गया है; तो कोई विवाद न करेगा। वह कहेगा. हमें पहले से ही पता है। वह चोर है ही। क्या हमें बता रहे हो! वह महाचोर है। तुम्हें अब पता चला! तुम्हारी आंखें अंधी थीं।
मजे की बात देखना...
जो प्रशंसायोग्य तत्व हैं, उनके लिए प्रमाण नहीं होते। और उनके लिए लोग प्रमाण पूछते हैं। और जो निंदा है, उसके लिए हजार प्रमाण होते हैं, लेकिन कोई प्रमाण पूछता ही नहीं। प्रमाण के बिना ही स्वीकार कर लेते हैं लोग। लोग निंदा स्वीकार करना चाहते हैं। लोग तैयार ही हैं कि निंदा करो।
पत्रकारों की दृष्टि ही मिथ्या हो जाती है...
क्योंकि उनका धंधा ही खराब है। उनके धंधे का मतलब ही यह है कि जनता जो चाहती है, वह लाओ खोजबीन कर। अच्छे से अच्छे आदमी में कुछ बुरा खोजो। सुंदर से सुंदर में कोई दाग खोजो। चांद की फिकर छोड़ो। चांद पर वह जो काला धब्बा है, उसकी चर्चा करो। क्योंकि लोग धब्बे में उत्सुक हैं, चांद में उत्सुक नहीं हैं। चांद की बात करो, तो कोई अखबार खरीदेगा ही नहीं। ध्यान रखना, इस जगत में तथ्य होते ही नहीं। तथ्य झूठ बात है। इस जगत में सब व्याख्याएं हैं, तथ्य नहीं होते।
OSHO
धन्यवाद
